खरीफ सीजन में डीएपी खाद की भारी किल्लत, नहीं मिलेगी सोसाइटियों में बाजार की कीमत उड़ा रही होश, किसानों की बढ़ी चिंता
DAP: खरीफ सीजन 2025 में छत्तीसगढ़ के किसानों को सबसे बड़ी समस्या का सामना डीएपी खाद की भारी किल्लत के रूप में करना पड़ रहा है। डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP), जो धान की खेती में अत्यंत आवश्यक उर्वरक है, अब राज्य में कई सोसाइटियों में अनुपलब्ध है। इसका कारण अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध और लाल सागर संघर्ष को बताया जा रहा है।
खास बात यह है कि समितियों में खाद उपलब्ध नहीं है, यानी डीएपी खुले बाजार में उपलब्ध है, लेकिन इसकी कीमत अधिक है। वर्तमान में बाजार मूल्य 1750 रुपए है, जो पीक सीजन में बढ़ जाएगा। कृषि विभाग की सलाह पर मार्कफेड ने परिस्थिति के अनुसार किसानों के लिए डीएपी की जगह अन्य खाद समितियों को उपलब्ध कराई है।
हालांकि सरकार अब भी दावा कर रही है कि राज्य में खाद की कमी नहीं है, लेकिन डीएपी की कमी नहीं है। सहकारी क्षेत्र के अपेक्स बैंक सूत्रों के अनुसार वर्तमान में समितियों को करीब चार लाख टन विभिन्न खाद उपलब्ध कराई गई है। इसमें यूरिया, सुपर फास्फेट, डीएपी, एनपीके, एमओपी सहित अन्य शामिल हैं। इसमें से करीब डेढ़ लाख क्विंटल खाद किसानों ने ली है।
रायपुर, गरियाबंद, बलौदाबाजार सहित अन्य जिलों में खाद उपलब्ध बताई जा रही है। मार्कफेड व सहकारी क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि मांग के मुकाबले डीएपी की उपलब्धता कम है। रूस-यूक्रेन युद्ध और लाल सागर में इजरायल के साथ चल रही लड़ाई जैसे अंतरराष्ट्रीय कारणों से जल परिवहन प्रभावित हुआ और इसलिए कई देशों से उर्वरक आयात प्रभावित हुआ।
फिलहाल इस संकट के थमने की संभावना कम ही है। इस संबंध में मार्कफेड की एमडी किरण कौशल ने बताया कि फिलहाल डीएपी उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि कृषि विभाग के मार्गदर्शन में किसानों को अन्य वैकल्पिक उर्वरक उपलब्ध कराए जा रहे हैं। चावल के लिए 100-120 किलोग्राम डीएपी प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है, लेकिन इसका उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए।
अगर डीएपी के विकल्प की बात करें तो डीएपी की कमी होने पर एनपीके (12:32:16) या सिंगल सुपर फॉस्फेट का उपयोग किया जा सकता है। समितियां किसानों को एनपीके 20-20-16 उपलब्ध करा रही हैं।
डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) चावल की फसलों के लिए एक महत्वपूर्ण उर्वरक है, क्योंकि इसमें नाइट्रोजन (18%) और फास्फोरस (46%) की उच्च मात्रा होती है, जो पौधों की वृद्धि और उपलब्धता के लिए आवश्यक है। चावल उत्पादन में डीएपी का उपयोग इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि फास्फोरस चावल के पौधों की जड़ों को मजबूत करता है, जिससे पौधे मिट्टी से पानी और पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से अवशोषित कर पाते हैं।
इस बार दुर्ग जिले में डीएपी खाद की भारी कमी है, जिसके कारण बारिश के बाद किसान रोपनी नहीं कर पा रहे हैं। बताया जा रहा है कि यहां डीएपी की कमी का आलम यह है कि पिछले साल की तुलना में भंडारण लक्ष्य में आधे से ज्यादा की कटौती कर दी गई है।
सोसायटियों में किसानों को खाद और केसीसी में नकद इनपुट मिल रहा है। पंद्रह दिन बाद भी खाद नहीं आने की खबर दी गई। नागपुर के किसान पुकेश्वर साहू ने बताया कि दामोदा, भेड़सर, रसमड़ा समेत आसपास की सोसायटियों में डीएपी खाद की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल जिले में 14915 टन डीएपी खाद बांटने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इस बार मार्कफेड ने मांग कम कर दी है।
इस बार सिर्फ 5267 टन डीएपी बांटने का लक्ष्य रखा गया था। जिले में अब तक सिर्फ 3883 टन डीएपी ही बंट पाई है। कोढिया सोसायटी के धनोरा उपकेंद्र के लिपिक देवलाल साहू ने बताया कि एक हजार बोरी डीएपी की डिमांड भेजी गई थी, लेकिन बीस दिन बाद मात्र दस फीसदी डीएपी ही भेजी गई है। राजनांदगांव के पालीमेटा, मोहगांव, ठाकुरटोला सोसायटी में डीएपी खाद नहीं है। क्षेत्र के सैकड़ों किसान खाद की तलाश में इधर-उधर भटकते रहे।
पालीमेटा सोसायटी पहुंचे मानपुर के किसान ईश्वर यादव और मोहगांव के खेलू राम जंघेल ने बताया कि वे कई दिनों से डीएपी खाद के लिए सोसायटी आ रहे हैं, लेकिन सोसायटी में डीएपी खाद का स्टॉक नहीं होने से खाद नहीं मिल पा रही है। राजनांदगांव के विचारपुर सोसायटी में डीएपी सीमित कार्रवाई पहुंची। सोसायटी में कुछ किसानों को पर्ची के अनुसार यह दिया गया है। वर्तमान में यहां डीएपी खाद नहीं है।
सोसायटी पहुंचे किसान मोहन भारती और तीरथ जंघेल ने बताया कि डीएपी के लिए पर्ची नहीं दी गई। हालांकि अन्य खाद के लिए पर्ची मिली है। नगपुरा के किसान पुकेश्वर साहू ने बताया कि खाद और नकद राशि केसीसी को लिख दी गई थी, लेकिन पंद्रह दिन तक चक्कर लगाने के बावजूद डीएपी नहीं मिली। बोरई के झबेंद्र भूषण वैष्णव ने बताया कि मैनेजर कह रहे हैं कि सोसायटी में डीएपी खाद उपलब्ध नहीं है। इसके बदले हमें एनपीके और अन्य खाद मिलाकर डालने को कहा जा रहा है। हमारी मांग डीएपी खाद की है।
