इस विधि से करोगे टमाटर की खेती तो मुनाफा होगा छप्परफाड़! सरकार दे रही अनुदान भी, जानें
Kheti: करनाल जिले के किसान वर्षों से परंपरागत तरीके से टमाटर की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन अब वे अपनी फसल को और ज्यादा फायदे में लाने के लिए बांस स्टेकिंग तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह तकनीक न केवल फसल के नुकसान को कम करती है, बल्कि किसानों को सरकारी अनुदान और बढ़े हुए मुनाफे का भी लाभ देती है।
करनाल जिले में किसान आमतौर पर साल में दो बार टमाटर की फसल लगाते हैं। बांस तकनीक (बांस के डंडे) की मदद से जिले में चार से पांच हजार हेक्टेयर भूमि पर टमाटर की फसल उगाई जा सकती है। यहां के किसान मुख्य रूप से हिमसोना और माणिक जैसी टमाटर की बेल वाली किस्मों के अलावा साहू, रानी आदि कई अन्य किस्मों की खेती करते हैं। जिन किसानों ने सितंबर में टमाटर की फसल लगाई थी, उनकी कटाई जारी है, लेकिन किसान जनवरी से मई के अंत या मार्च के पहले सप्ताह तक भी टमाटर की फसल लगा सकते हैं।
किसान प्राचीन काल से ही टमाटर उगाते आ रहे हैं। वहां कई फसलें मौसम के प्रतिकूल प्रभाव या जमीन में फंसने के कारण नष्ट हो गई हैं। टमाटर व अन्य बेल वाली सब्जियों की खेती यदि बांस या कम लागत वाली तकनीक से की जाए तो नुकसान भी नहीं होगा और सरकार से सब्सिडी भी मिलेगी।
यदि वे बांस की सहायता से टमाटर आदि बेल वाली सब्जियां उगाते हैं तो उन्हें प्रति हेक्टेयर 1500 बक्सों तक की उपज मिल सकती है, जो सामान्य से अधिक है। बागवानी विभाग द्वारा बांस आधारित तकनीक से टमाटर की खेती के लिए 15,000 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी दी गई है।
जबकि, अनुसूचित जाति के किसानों को टमाटर की फसल के लिए 25500 रुपये तथा सट्टे के लिए 63125 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी दी जाती है। इसके साथ ही किसानों को भावांतर भरपाई योजना में भी अपना नामांकन कराना होगा ताकि किसी भी कारण से नुकसान होने पर उन्हें मुआवजा दिया जा सके।
बागवानी विशेषज्ञों के अनुसार इस समय टमाटर लगाना सबसे अच्छा होता है क्योंकि इस समय लगाए गए टमाटर की फसल अप्रैल से जून तक लंबी होती है। साथ ही शादियां और त्यौहार भी हैं, इसलिए टमाटर के दाम भी अच्छे हैं। नुकसान भी कम है; परिणामस्वरूप, किसानों का मुनाफा बढ़ गया है।