Khelorajasthan

मात्र 1 महीने की खेती में हो जाओगे मालामाल, करें इस चीज की खेती 

आजकल कृषि क्षेत्र में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है, और किसानों को अधिक मुनाफा देने वाली नई तकनीकों और योजनाओं का लाभ मिल रहा है। बिहार के किसान अवधेश मेहता ने पारंपरिक खेती को छोड़कर मशरूम उत्पादन को अपना कर एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। उनका उदाहरण दिखाता है कि सही दिशा, सही योजना और मेहनत से कृषि क्षेत्र में बेहतर सफलता प्राप्त की जा सकती है।
 

Khetibadi News : आजकल कृषि क्षेत्र में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है, और किसानों को अधिक मुनाफा देने वाली नई तकनीकों और योजनाओं का लाभ मिल रहा है। बिहार के किसान अवधेश मेहता ने पारंपरिक खेती को छोड़कर मशरूम उत्पादन को अपना कर एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। उनका उदाहरण दिखाता है कि सही दिशा, सही योजना और मेहनत से कृषि क्षेत्र में बेहतर सफलता प्राप्त की जा सकती है।

12 हजार रुपये के निवेश से शुरुआत

अवधेश मेहता ने मशरूम उत्पादन की शुरुआत मात्र 12 हजार रुपये के निवेश से की। उन्होंने 200 बैग तैयार किए, जिनकी प्रति बैग लागत 60 रुपये थी। एक बैग से 1 से 1.5 किलो मशरूम की उपज हुई, और बाजार में मशरूम की कीमत 250 रुपये प्रति किलो रही। इस प्रकार, 200 बैग से उन्हें 50 हजार रुपये तक की कमाई हो रही है, जो पारंपरिक खेती से कहीं ज्यादा है। यह एक बहुत ही सफल और लाभकारी मॉडल साबित हुआ है।

मशरूम उत्पादन में जोखिम और मुनाफा

मशरूम उत्पादन में पारंपरिक खेती की तुलना में कम जगह और कम लागत की आवश्यकता होती है, जिससे यह किसानों के लिए एक आदर्श विकल्प बनता है। अवधेश की सफलता को देखकर, अब 15 अन्य किसान भी मशरूम उत्पादन में जुट गए हैं। मशरूम उत्पादन कम जोखिम में अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है और यह किसानों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन गया है।

मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया

मशरूम के लिए ठंडी और नमीयुक्त जगह चाहिए। बीज को पुआल या गेहूं की भूसी में मिलाकर बैग तैयार किए जाते हैं। 20-25 डिग्री पारा और 80-85% नमी की आवश्यकता होती है। 25-30 दिनों में मशरूम कटाई के लिए तैयार हो जाता है और इसे बाजार में बेचा जाता है।

मशरूम उत्पादन पारंपरिक खेती के मुकाबले ज्यादा कमाई और कम समय में होता है। 25-30 दिनों में उत्पादन तैयार हो जाता है और कम लागत में अधिक मुनाफा मिलता है। इस व्यवसाय में जोखिम कम होता है, जबकि मुनाफा ज्यादा मिलता है। यही कारण है कि अब कई किसान इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं और सफलता पा रहे हैं।