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राजस्थान में ऐसे होती हैं देवउठनी एकादशी की पूजा, पंडित ओमकार शास्त्री ने बताई पूरी विधि 

हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखने वाला एक विशेष पर्व है, जो भगवान विष्णु के जागृत होने के दिन के रूप में मनाया जाता है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, जो आमतौर पर नवंबर महीने में पड़ती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा और उपवास का आयोजन किया जाता है, ताकि भक्तों को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हो और उनका जीवन शांति और समृद्धि से भर जाए।
 

Rajatshan News : हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखने वाला एक विशेष पर्व है, जो भगवान विष्णु के जागृत होने के दिन के रूप में मनाया जाता है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, जो आमतौर पर नवंबर महीने में पड़ती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा और उपवास का आयोजन किया जाता है, ताकि भक्तों को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हो और उनका जीवन शांति और समृद्धि से भर जाए।

पंडित ओमकार सश्त्री (Omkar Sashtri) के अनुसार, देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु भगवान श्रीनारायण योगनिद्रा से जागते हैं, और इसके साथ ही शास्त्रों के अनुसार शुभ कार्यों की शुरुआत भी मानी जाती है। खासकर विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य धार्मिक कार्य इस दिन से शुरू किए जाते हैं।

देवउठनी एकादशी की पूजा विधि बहुत ही खास होती है, और यह व्यक्ति की भक्ति को मजबूत करने के लिए जानी जाती है। पंडित ओमकार सश्त्री के अनुसार, पूजा विधि इस प्रकार है:इस दिन उपवास का विशेष महत्व है। भक्त इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके स्वच्छता की ध्यान रखते हैं।इस दिन सुबह-सुबह मंदिर जाकर या घर पर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।इस दिन भगवान विष्णु के साथ साथ लक्ष्मी माता की भी पूजा की जाती है। भक्त व्रत रखते हुए 24 घंटे का उपवास करते हैं।व्रति केवल फलाहार या फिर दूध और पानी का सेवन कर सकते हैं।

पूजा के दौरान विशेष रूप से "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना चाहिए, जो भगवान विष्णु का मुख्य मंत्र है।इसके साथ श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह पूजा के दौरान भगवान विष्णु की महिमा का बखान करता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।