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राजस्थान में निशुल्क इलाज पर चार साल में 86 करोड़ ज्यादा खर्च, सीएम शर्मा ने कहा 

राजस्थान में खर्च हुए पैसों के हिसाब-किताब कोई सिस्टम नहीं बनाया गया है। इस मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना(अब आयुष्मान आरोग्य) में पीबीएम हॉस्पिटल प्रशासन ने पिछले चार सालों में 201.04 करोड़ खर्च कर दिए, जबकि क्लेम 114.97 करोड़ मिला है। यानी 86.07 करोड़ अधिक खर्च हुए। वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री निरोगी राजस्थान योजना के तहत 1 लाख 41 हजार 428 मरीजों को निशुल्क उपचार का लाभ इन नौ महीने में मिला है।
 

Rajasthan News : राजस्थान में खर्च हुए पैसों के हिसाब-किताब कोई सिस्टम नहीं बनाया गया है। इस मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना(अब आयुष्मान आरोग्य) में पीबीएम हॉस्पिटल प्रशासन ने पिछले चार सालों में 201.04 करोड़ खर्च कर दिए, जबकि क्लेम 114.97 करोड़ मिला है। यानी 86.07 करोड़ अधिक खर्च हुए। वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री निरोगी राजस्थान योजना के तहत 1 लाख 41 हजार 428 मरीजों को निशुल्क उपचार का लाभ इन नौ महीने में मिला है।

 इससे पहले भी लाखों मरीजों का उपचार इस योजना में हो चुका है, लेकिन इस पर खर्च का अलग से कोई हिसाब-किताब नहीं है। सरकार से इस योजना में अलग से कोई बजट नहीं मिलता। विभिन्न मदों से बजट से काम चलाया जा रहा था। अब अस्पताल का बजट गड़बड़ा गया है। इसका रास्ता निकालते हुए मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना(पहले चिरंजीवी) में मिलने वाले क्लेम से निरोगी राजस्थान के खर्च को एडजस्ट किया जा रहा है। 

इसमें उन मरीजों का उपचार हो रहा है, जो किसी अन्य योजना में नहीं आ रहे और जरूरतमंद हैं। चिंता की बात ये है कि साल 2025 में पीबीएम हॉस्पिटल को निरोगी राजस्थान योजना चलाना महंगा पड़ेगा। क्योंकि मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना में खर्चा अधिक और क्लेम कम होता रहा है। मरीज अच्छी सुविधाओं के कारण प्राइवेट हॉस्पिटल में डायवर्ट होने लगे हैं। कैंसर मरीजों के लिए चार-चार लाख के इंजेक्शन तक निरोगी योजना में खरीदने पड़ रहे हैं। 

पर महंगी जांचें बाहर से हो रही हैं। इससे अब मोटा पैसा प्राइवेट सेक्टर में पास जा रहा है।आचार्य तुलसी रीजनल कैंसर ट्रीटमेंट एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट देश का 13वां और प्रदेश का पहला सरकारी इंस्टीट्यूट है। इसके नाम से ही यहां राजस्थान के अलावा हरियाणा और पंजाब से भी मरीज आते हैं। पिछले सालों तक ओपीडी 400-500 को होता था, जो अब करीब 350 का हो गया है। प्राइवेट सेक्टर में इलाज की सुविधा विकसित होने के कारण 100-150 मरीज डायवर्ट हो रहे हैं। कैंसर विशेषज्ञों को घर दिखाकर इलाज प्राइवेट हॉस्पिटल में करवा रहे हैं। 

मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना में रजिस्टर्ड होने से पेट स्कैन पीबीएम से ज्यादा प्राइवेट में होने लगे हैं। सरकार से प्रति मरीज 14 हजार क्लेम मिलता है। हालांकि प्राइवेट में पेट स्कैन योजना में कवर हो जाती है, जबकि कीमो थेरैपी, रेडियोथैरेपी, गामा की जांच के मरीज को पैसे देने पड़ते हैं, जबकि कैंसर हॉस्पिटल में सभी जांच निशुल्क है। कैंसर सेंटर में गामा कैमरा कंडम हो चुका है। गामा से बोन स्कैन, डीटीपीए सहित करीब 22 तरह की जांच होती है। इसे आउट सोर्स तो कर दिया, पर मंजूरी नहीं दी। मरीजों को मजबूरी में बाहर करानी पड़ती है। 

राजस्थान मेडिकल सर्विस कोऑपरेशन लिमिटेड ने 50 हजार से अधिक की दवाओं की खरीद के लिए ट्यूमर बोर्ड बना रखा है। कैंसर सेंटर ने इसकी लिमिट अब पांच हजार कर दी है। कैंसर हॉस्पिटल की डायरेक्टर डॉ. नीति शर्मा का कहना है कि आउट ऑफ स्टेट मरीजों की जांच से पहले 65 हजार रुपए तक ही राजस्व आ रहा था। इस साल यह आंकड़ा चार लाख तक पहुंचा है। 

एक साल में 12157 नए तथा 1.26 लाख मरीज फालोअप के लिए आते हैं। इस योजना के तहत 128 तरह की जांचें आउट सोर्स की गई हैं। यह सभी महंगी जांचें हैं, जो पीबीएम में नहीं हो रहीं। इसका कांट्रेक्ट भी पवनपुरी स्थित एक निजी लैब को दिया गया है। हल्दीराम मूलचंद हार्ट हॉस्पिटल इन जांचों को संग्रहण केंद्र है। इन जांचों के लिए संबंधित विभाग के एचओडी और अधीक्षक की मंजूरी जरूरी है। पूर्व सरकार की योजना है, अलग से बजट ही नहीं : मुख्यमंत्री निरोगी राजस्थान योजना पूर्व सरकार ने शुरू की थी। 

इसके तहत सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों को बेड पर निशुल्क दवा उपलब्ध कराई जाने लगी। बड़ी जांचें भी फ्री कर दी गईं। लेकिन इसके लिए अलग से बजट ना देकर मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना में ही इसे एडजस्ट कर दिया गया। पीबीएम प्रशासन के लिए इस योजना में बजट की व्यवस्था करने में ही पसीने आने लगे हैं। इसलिए सरकार से 19 करोड़ का बजट अलग से मांगा गया है।