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 गाड़ियों की On-Road Price और Ex-Showroom प्राइस में क्या अंतर होता है, जानें किस प्रकार बढ़ती है गाड़ी की कीमत

बाइक या स्कूटर के विज्ञापन में उसकी कीमत देखते हैं, तो वह केवल एक्स-शोरूम प्राइस होती है, यानी वह मूल्य जो वाहन निर्माता द्वारा शोरूम को दिया जाता है। यह अंतर उन सभी टैक्स और फीस के कारण होता है जो वाहन की कीमत में जुड़ते हैं। आइए जानते हैं एक्स-शोरूम और ऑन-रोड प्राइस के बीच अंतर और उस बढ़ी हुई कीमत के कारण।
 

On-Road Price And Ex-Showroom Price : बाइक या स्कूटर के विज्ञापन में उसकी कीमत देखते हैं, तो वह केवल एक्स-शोरूम प्राइस होती है, यानी वह मूल्य जो वाहन निर्माता द्वारा शोरूम को दिया जाता है। यह अंतर उन सभी टैक्स और फीस के कारण होता है जो वाहन की कीमत में जुड़ते हैं। आइए जानते हैं एक्स-शोरूम और ऑन-रोड प्राइस के बीच अंतर और उस बढ़ी हुई कीमत के कारण।

यह वह कीमत होती है जो वाहन निर्माता शोरूम को देते हैं। इसमें वाहन की निर्माण लागत, गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST), और डीलर का लाभ शामिल होता है। यह कीमत आमतौर पर बहुत ही बेसिक होती है, और इस पर कोई अतिरिक्त शुल्क या टैक्स नहीं जोड़ा जाता है। यह कीमत वह होती है जो कस्टमर को शोरूम में वाहन खरीदते समय चुकानी होती है। इसमें एक्स-शोरूम प्राइस के अलावा कई तरह के टैक्स, रजिस्ट्रेशन, इंश्योरेंस, और अन्य शुल्क जोड़े जाते हैं। इन सभी शुल्कों के कारण ऑन-रोड प्राइस एक्स-शोरूम प्राइस से कहीं अधिक हो जाती है।

1. रजिस्ट्रेशन चार्ज (Registration Charge)

किसी भी नए वाहन को खरीदने के बाद, सबसे पहले उसे आरटीओ (RTO) से रजिस्टर कराना होता है। इस रजिस्ट्रेशन चार्ज को एक्स-शोरूम प्राइस में जोड़ा जाता है। यह शुल्क हर राज्य में अलग-अलग होता है।

2. रोड टैक्स (Road Tax)

यह टैक्स एक बार वाहन खरीदने के बाद चुकाना होता है। यह टैक्स वाहन की एक्स-शोरूम प्राइस के आधार पर तय होता है। सड़क पर वाहन चलाने की अनुमति देने के लिए रोड टैक्स जरूरी है।

3. ग्रीन टैक्स (Green Tax)

यह टैक्स उन वाहनों पर लागू होता है जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं, खासकर पुरानी गाड़ियों पर। यह टैक्स उन वाहनों पर लगता है जो लंबे समय से चल रहे हैं और प्रदूषण का कारण बन रहे हैं।

4. टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स (TCS)

यह वह शुल्क है जो रिटेलर को वाहन की बिक्री पर एक्स-शोरूम प्राइस का 1% हिस्सा देना होता है।

5. इंश्योरेंस (Insurance)

इंश्योरेंस वाहन खरीदने के लिए अनिवार्य होता है। यह वाहन की चोरी, एक्सीडेंट, या अन्य किसी नुकसान से सुरक्षा प्रदान करता है और इसकी कीमत ऑन-रोड प्राइस में जुड़ जाती है।

6. फास्टैग (FASTag)

यदि आप अपनी नई गाड़ी में फास्टैग इंस्टॉल करते हैं, तो आपको टोल टैक्स के लिए भी शुल्क देना होता है। यह अतिरिक्त खर्च ऑन-रोड प्राइस को बढ़ाता है।

7. कार लोन ब्याज (Car Loan Interest)

यदि आप लोन के माध्यम से गाड़ी खरीदते हैं, तो लोन पर ब्याज भी आपके कुल खर्च को बढ़ा देता है। इस ब्याज को भी ऑन-रोड प्राइस में शामिल किया जाता है।