हरियाणा में कांग्रेस को मिली हार की वजह से पूर्व सीएम गहलोत पर उठाए गए मुद्दे
Rajasthan News : बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और हरियाणा प्रभारी सतीश पूनिया के लिए इन नतीजों ने सियासी संजीवनी का काम किया है। इस जीत ने पार्टी में पूनिया का कद बढ़ाया है और आगे चलकर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी की भूमिका तय कर दी है। वहीं, कांग्रेस की हार से सीनियर ऑब्जर्वर बनाए गए पूर्व सीएम अशोक गहलोत की रणनीति पर सवाल उठेंगे। वे डैमेज कंट्रोल नहीं कर पाए।ये नतीजे कुछ हद तक राजस्थान में 7 सीटों पर होने वाले उप चुनावों का नरेटिव भी सेट करेंगे। इन उप चुनावों में भी हरियाणा के नतीजों से बीजेपी को नरेटिव के तौर पर लाभ जरूर होगा।
कांग्रेस अब तक जिस तेजी से बीजेपी और सरकार पर राजनीतिक हमले कर रही थी, उन हमलों की धार अब कुंद पड़ेगी। हरियाणा की हार ने कुछ समय के लिए बीजेपी को राजस्थान में भी अपर हैंड पर ला दिया है।हरियाणा विधानसभा चुनाव की जीत ने वहां प्रभारी बनाए गए सतीश पूनिया को भी सियासी तौर से काफी संबल दिया है। पिछली बार आमेर से चुनाव हारने के बाद सतीश पूनिया को हरियाणा में जिम्मेदारी दी गई थी। हरियाणा विधानसभा चुनाव की जीत के बाद प्रभारी के तौर पर उन्हें भी सियासी क्रेडिट मिलेगा।इससे उनकी संगठन के नेता की छवि भी मजबूत होगी।
राजस्थान में चुनाव हारने के बाद एक बार यह मान लिया गया था कि सतीश पूनिया अब सियासी हाशिए पर चले जाएंगे, लेकिन संगठन ने उन्हें जिस तरह से जिम्मेदारी दी और अब हरियाणा की जीत उनके लिए सियासी कम बैक साबित हो सकती है।
वे वरिष्ठ नेताओं की कतार में शामिल हो गए हैं। आगे होने वाले चुनावों में भी उन्हें और जिम्मेदारी मिल सकती है। चुनावों में वे लगातार सक्रिय रहे थे और तबीयत खराब होने के बावजूद वोटिंग के दिन भाजपा कार्यालय पहुंचे थे।सीएम भजनलाल हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी के स्टार प्रचारक थे, उन्होंने जहां-जहां भी सभाएं की ज्यादातर जगहों पर बीजेपी जीती।
स्टार प्रचारक के तौर पर वे इस जीत को भुनाएंगे। विधानसभा उप चुनाव के दौरान अब वे हरियाणा का उदाहरण दे सकते हैं। कांग्रेस के हमले रुकेंगे।जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार बनने से सह प्रभारी के तौर पर दिव्या मदेरणा को भी सियासी तौर पर एक सहारा मिलेगा। विधानसभा चुनाव हार चुकी दिव्या मदेरणा के लिए जम्मू-कश्मीर के नतीजे राजनीतिक तौर से फायदेमंद रहेंगे। हाईकमान की निगाह में उनका कद बढ़ेगा।हरियाणा विधानसभा में पूर्व सीएम अशोक गहलोत को सीनियर ऑब्जर्वर की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन वहां जिस तरह से अप्रत्याशित नतीजे आए हैं, उसमें जिम्मेदार उन्हें भी ठहराया जाएगा।
पॉलिटिकल मैनेजमेंट की कमी, डैमेज कंट्रोल नहीं कर पाने और गुटबाजी के कारण जीती हुई बाजी हारने की जिम्मेदारी उनके हिस्से भी आएगी।राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कुछ कमियां समय रहते निपटाई जा सकती थीं। सीनियर ऑब्जर्वर और वरिष्ठ नेताओं को डैमेज कंट्रोल करना चाहिए था, लेकिन वे नहीं कर पाए। कुमारी शैलजा और भूपेंद्र हुड्डा के बीच की लड़ाई को चुनाव के बीच भी बैलेंस नहीं कर पाने के पीछे भी सीनियर आब्जर्वर के तौर पर गहलोत को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
राजस्थान कांग्रेस में भी उसी तरह की भारी गुटबाजी रही है, जिस तरह की हरियाणा में है।रेवाड़ी में काम नहीं आया डोटासरा का गमछा डांस रेवाड़ी सीट पर गोविंद सिंह डोटासरा ने कांग्रेस उम्मीदवार और राजस्थान कांग्रेस के सहप्रभारी सचिव चिरंजीव राव का प्रचार किया था। डोटासरा ने वहां तेजल गाने पर गमछा डांस भी किया था, इस डांस का वीडियो चुनाव के दौरान खूब चर्चित हुआ था। राव इस सीट पर बड़े अंतराल से चुनाव हारे।
इस सीट पर अशोक गहलोत ने भी सभा की थी।अर्जुन मेघवाल ने स्टार प्रचारक के तौर पर दलित वोटों को साधा केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने स्टार प्रचारक के तौर पर हरियाणा में 40 से ज्यादा सभाएं कीं। दलितों वोटों को साधने और नरेटिव बनाने में उनका भी रोल रहा। मेघवाल ने गुरुग्राम, सोहना बावल, रेवाड़ी ,पटौदी बादशाहपुर, रोहतक, यमुनानगर सहित कई विधानसभा क्षेत्रों में सभाएं कीं, ज्यादातर पर भाजपा ने जीत दर्ज की है।अर्जुन मेघवाल को गुड़गांव क्षेत्र की अलग से जिम्मेदारी भी दी गई थी, वहां पर बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहा है।