राजस्थान उपचुनाव में इस सीट पर कड़ा मुकाबला, देखें कौन मरेगा बाज़ी
Rajatshan News : राजस्थान में 7 सीटों पर होने वाले उपचुनावों का सियासी माहौल गरमाया हुआ है। विशेष रूप से दौसा, झुंझुनूं, देवली-उनियारा और रामगढ़ में मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है। प्रत्येक सीट पर स्थानीय मुद्दे, पार्टी के अंदरूनी संघर्ष और उम्मीदवारों की रणनीति चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है।
दौसा सीट पर मुकाबला बेहद कड़ा है। यहां बीजेपी से जगमोहन मीणा और कांग्रेस से दीनदयाल बैरवा मैदान में हैं। दोनों प्रमुख दलों के बीच इस सीट पर प्रतिष्ठा दांव पर है। बीजेपी में मंत्री किरोड़ी लाल मीणा अपने भाई जगमोहन के लिए प्रचार कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस में सचिन पायलट समर्थक बैरवा के पक्ष में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। दौसा में विकास और पानी की कमी जैसे मुद्दे प्रमुख हैं, लेकिन अंदरूनी नाराजगी और भितरघात का खतरा भी दोनों दलों के लिए चुनौती बनी हुई है।
झुंझुनूं सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। यहां ओला परिवार की प्रतिष्ठा और राजेंद्र गुढ़ा के निर्दलीय उतरने से समीकरण बदल गए हैं। बीजेपी ने पहले बबलू चौधरी को टिकट देने के बाद नाराजगी कम करने की कोशिश की थी, लेकिन अब भी अंदरखाने असंतोष बना हुआ है। गुढ़ा अल्पसंख्यक और दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। शहर में कई लोग इस बार गुढ़ा के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं, जबकि ओला परिवार की सत्ता को लेकर असंतोष भी बढ़ा है।
देवली-उनियारा सीट पर इस बार कांग्रेस के कस्तूरचंद मीणा और बीजेपी के राजेंद्र गुर्जर के मुकाबले, नरेश मीणा ने त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है। नरेश मीणा के बागी होने से कांग्रेस के लिए स्थिति कठिन हो सकती है। किसानों का मुद्दा यहां प्रमुख है, साथ ही विकास के मुद्दे पर भी लोग नाराज हैं। हालाँकि, बीजेपी का कैडर मजबूत है, लेकिन कांग्रेस में बागी खेमे के साथ-साथ अंदरूनी नाराजगियां भी समस्याएं पैदा कर सकती हैं।
रामगढ़ सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है, लेकिन आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार का प्रभाव भी चुनावी समीकरण को बदल सकता है। यहां पर दलित वोट निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। बीजेपी से सुखवंत सिंह और कांग्रेस से दिवंगत विधायक जुबेर खान के बेटे आर्यन खान मैदान में हैं। इस सीट पर जाति और धर्म आधारित गोलबंदी की संभावना भी जताई जा रही है। सहानुभूति फैक्टर भी आर्यन खान के पक्ष में काम कर सकता है, लेकिन धार्मिक गोलबंदी और जातीय समीकरण के कारण परिणाम निर्णायक होंगे।