Rajasthan: राजस्थान में 90 नगर निकाय अध्यक्षों की कुर्सी पर संकट! इस वजह से छोड़नी पड़ेगी कुर्सी, जानें

Rajasthan Big News Today: राजस्थान में आगामी समय में एक बड़ा बदलाव आ सकता है, जिससे 90 नगर निकाय अध्यक्षों की कुर्सी पर संकट आ सकता है। राज्य सरकार द्वारा किए गए संकेतों के अनुसार, आगामी साल 2025 में 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' के तहत सभी नगर निकायों के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। इसके कारण, जिन नगर निकायों का कार्यकाल जनवरी 2026 तक पूरा हो रहा है, उनके बोर्ड को 5 साल पहले भंग किया जा सकता है।
क्या है 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' का मकसद?
'वन स्टेट, वन इलेक्शन' का उद्देश्य प्रदेश भर में एक ही समय पर सभी चुनाव कराना है, जिससे चुनावी प्रक्रिया में होने वाले खर्चों और समय की बचत हो सके। यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इसे लेकर स्पष्ट रूप से बयान दिया कि सरकार का मन बन चुका है और वह सभी नगर निकायों के चुनाव एक साथ 2025 में करवाएगी। इसका प्रभाव यह पड़ेगा कि वर्तमान में जिन 90 निकायों का कार्यकाल जनवरी 2026 तक चलने वाला था, उन बोर्डों को पहले ही भंग किया जा सकता है।
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राजस्थान में 90 निकायों के बोर्ड को भंग करने की तैयारी
राज्य सरकार ने इस कदम को लेकर पहले ही तैयारी शुरू कर दी है। मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने झुंझुनू में यह जानकारी दी कि कानूनी प्रावधान के तहत छह महीने पहले तक कार्यकाल समाप्त किया जा सकता है। इस योजना के तहत, 90 निकायों के अध्यक्षों और उनके बोर्ड को 2025 के चुनावों से पहले भंग किया जा सकता है।
प्रशासनिक अधिकारी होंगे नियुक्त
मंत्री ने यह भी कहा कि जिन नगर निकायों के अध्यक्षों का कार्यकाल पूरा हो चुका है, वहां प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशासक के रूप में नियुक्त किया जाएगा। इस कदम से राज्य सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि निकायों के कामकाज में किसी भी तरह की राजनीतिक दखलअंदाजी ना हो।
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सीकर, चूरू और झुंझुनूं में यमुना का पानी
खर्रा ने आगे जानकारी देते हुए कहा कि भजनलाल सरकार अपने कार्यकाल में सीकर, चूरू और झुंझुनूं के गांव-गांव तक यमुना का पानी पहुंचाने की योजना पर काम कर रही है। इसके लिए हाल ही में एक ज्वाइंट टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो सर्वे का काम करेगा। सर्वे के बाद डीपीआर तैयार की जाएगी, और इसके बाद यमुना का पानी इन जिलों में पहुंचाया जाएगा।
नीमकाथाना जिले के फैसले पर मंत्री का बयान
नीमकाथाना जिले को खत्म करने के सवाल पर मंत्री ने कहा कि जनहित के निर्णय लेने से पहले आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखना बेहद जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि एक जिले को विकसित करने के लिए लगभग 2 से 3 हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता होती है, और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।