राजस्थान विश्वविद्यालय ने किया ऐलान! सीनेट हॉल में सेवानिवृत्त समारोह और शोक सभाएं नहीं होंगी

Rajasthan University: राजस्थान विश्वविद्यालय ने अपने नए आदेश के तहत सीनेट हॉल में आयोजित होने वाले सेवानिवृत्त समारोह और शोक सभाओं पर रोक लगा दी है। विश्वविद्यालय के सामान्य प्रशासन द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि अब ये आयोजन संबंधित विभागों और कॉलेजों में अपने स्तर पर किए जाएंगे। इस बदलाव के बाद, इन आयोजनों का खर्च भी विभागों और कॉलेजों को ही वहन करना होगा।
परंपरा का अंत
राजस्थान विश्वविद्यालय में यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही थी, जहां हर महीने के अंत में सीनेट हॉल में सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों और शिक्षकों के लिए समारोह आयोजित किए जाते थे। इस दौरान, सेवानिवृत्त कर्मचारियों को कुलपति द्वारा शॉल, माला और मिठाई भेंट दी जाती थी।
साथ ही, उनके परिवारों को भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता था। इसके अलावा, विश्वविद्यालय में आकस्मिक निधन के बाद शोक सभाएं भी आयोजित की जाती थीं, जिसमें सभी कर्मचारी, शिक्षक और छात्र एकजुट होकर शोक व्यक्त करते थे।
विश्वविद्यालय प्रशासन का यह निर्णय क्यों आया?
इस आदेश के बाद, विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय संस्थान के प्रशासनिक सुधारों के हिस्से के रूप में लिया गया है। प्रशासन का मानना है कि इस बदलाव से वित्तीय मामलों पर नियंत्रण पाया जा सकेगा और आयोजनों की जिम्मेदारी संबंधित विभागों और कॉलेजों को सौंपने से संस्थान की वित्तीय स्थिति बेहतर होगी। हालांकि, यह निर्णय शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए हैरान करने वाला था, क्योंकि यह परंपरा कई दशकों से विश्वविद्यालय का हिस्सा रही थी।
विरोध और प्रतिक्रिया
राजस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षक, कर्मचारी और छात्र इस बदलाव के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि यह परंपरा विश्वविद्यालय के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अहम हिस्सा रही है, जो अब खत्म हो जाएगी।
ओम महला, प्रोफेसर और पूर्व सदस्य सिंडिकेट, ने कहा कि यह निर्णय संस्थान और उसके परिवार के हित में नहीं लगता और विश्वविद्यालय प्रशासन को इसे पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। कई शिक्षकों ने कहा कि इस बदलाव से कर्मचारी और उनके परिवारों के साथ संस्थान की भावनात्मक जुड़ाव भी खत्म हो जाएगा।
आदेश को लेकर छात्रों और शिक्षकों का ज्ञापन
राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों ने इस आदेश के खिलाफ ज्ञापन भी सौंपा है। उनका मानना है कि इस परंपरा को बनाए रखना चाहिए, क्योंकि यह विश्वविद्यालय की एक महत्वपूर्ण पहचान और सामाजिक कर्तव्य का हिस्सा रही है।