Khelorajasthan

राजस्थान में बीजेपी की पांच सीटों पर जीत पक्की, इन कारणों से मिली थी जीत 

राजस्थान में अब तक जातिगत समीकरणों के आधार पर हार-जीत तय करने वाली खींवसर और झुंझुनूं जैसी सीटें भी जीत कर पार्टी ने नया इतिहास भी रच दिया।उपचुनावों को फतह करने की रणनीति शीर्ष स्तर पर उस समय ही बनना शुरू हो गई थी जब भाजपा हरियाणा की चुनावी रणनीति तय करने में जुटी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लम्बे समय से चुनावों को जातिगत बंधनों से मुक्त करने की कवायद में जुटे थे। 
 
राजस्थान में बीजेपी की पांच सीटों पर जीत पक्की, इन कारणों से मिली थी जीत

Rajasthan News : राजस्थान में अब तक जातिगत समीकरणों के आधार पर हार-जीत तय करने वाली खींवसर और झुंझुनूं जैसी सीटें भी जीत कर पार्टी ने नया इतिहास भी रच दिया।उपचुनावों को फतह करने की रणनीति शीर्ष स्तर पर उस समय ही बनना शुरू हो गई थी जब भाजपा हरियाणा की चुनावी रणनीति तय करने में जुटी थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लम्बे समय से चुनावों को जातिगत बंधनों से मुक्त करने की कवायद में जुटे थे। 

इसके लिए पार्टी ने पीएम के निर्देश पर युवा, किसान और महिलाओं को फोकस करते हुए प्रदेश की सातों सीटों पर चुनाव प्रचार किया और इसका परिणाम भाजपा के पक्ष में आए।प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और इसके बाद सबसे ज्यादा फोकस प्रदेश की बड़ी समस्याओं पर रहा। इसमें किसानों को दिन में बिजली, समय पर पानी, युवाओं को रोजगार जैसे मुद्दे थे। सूत्रों की मानें तो पीएम नरेन्द्र मोदी से मिले निर्देश के तहत ही भजनलाल सरकार ने किसानों को दिन में बिजली देने का वादा करते हुए ऊर्जा क्षेत्र में कई काम शुरू किए। 

सीएम भजनलाल शर्मा अपनी चुनावी सभाओं में यह जरूर कहते कि वे किसानों को दो से तीन साल के अंदर-अंदर दिन में बिजली देंगे, जिससे उन्हें रात में परेशान नहीं होना पड़ेगा। युवाओं को रोजगार देने का भी वादा किया।राजस्थान उपचुनाव के रिजल्ट की 5 खास बातें, जानें सत्ता में आते ही भाजपा सरकार ने प्रदेश में शेखावाटी क्षेत्र में पानी की परेशानी को दूर करवाने की तरफ कदम बढ़ाए और यमुना जल समझौते को लेकर काम शुरू किया।   

पार्टी ने मंत्रियों, संगठन के पदाधिकारियों को उपचुनाव वाले क्षेत्रों में ही रहने को कह रखा था। इसका असर ये हुआ कि पार्टी ने मतदान से पहले ही लोगों की गाहे-बगाहे सामने आने वाली नाराजगी दूर करने में भी कामयाबी हांसिल कर ली। झुंझुनूं में बगावत हुई, उसे भी समय रहते नियंत्रण में कर लिया गया। खींवसर सीट पर जातिगत दबाव इतनी हावी था कि भाजपा समर्थित अन्य जातियां वोट देने ही नहीं निकलती थीं। ये मतदाता भी इस बार भाजपा के पक्ष में खुलकर सामने आए। पार्टी नेताओं को सलूम्बर में जीतने की उम्मीद कम ही थी, लेकिन पार्टी नेताओं ने हर सीट पर उपचुनाव को आम चुनाव की तरह ही लड़ा।