Khelorajasthan

राजस्थान के इस जिले में है अनोखी परंपरा, भाई दूज के दिन की जाती हैं गधे की पूजा

मेवाड़ अंचल के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में गधों की पूजा होती है.  कुम्हार समाज के लोग इस दिन गधों को नहला धुलाकर बड़े ही सुंदर तरीके से सजाने के बाद उनकी पूजा करते हैं. शनिवार (3 नवंबर) रात को भी वैशाख नंदन गधों की परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना की गई.  मांडल कस्बे के लोगों ने बताया कि किसान बैल की पूजा करते हैं. उसी प्रकार कुम्हार (प्रजापति) समाज के लोग गधों की पूजा सालों से करते आ रहे हैं. क्योंकि, इस समाज के लिए गधे ही रोजी-रोटी का बड़ा साधन है.
 
राजस्थान के इस जिले में है अनोखी परंपरा, भाई दूज के दिन की जाती हैं गधे की पूजा

Rajasthan News : मेवाड़ अंचल के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में गधों की पूजा होती है.  कुम्हार समाज के लोग इस दिन गधों को नहला धुलाकर बड़े ही सुंदर तरीके से सजाने के बाद उनकी पूजा करते हैं. शनिवार (3 नवंबर) रात को भी वैशाख नंदन गधों की परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना की गई.  मांडल कस्बे के लोगों ने बताया कि किसान बैल की पूजा करते हैं. उसी प्रकार कुम्हार (प्रजापति) समाज के लोग गधों की पूजा सालों से करते आ रहे हैं. क्योंकि, इस समाज के लिए गधे ही रोजी-रोटी का बड़ा साधन है.

 गधे से तालाब से मिट्टी ढोकर लाते हैं, इसलिए सालों से यह परंपरा मांडल कस्बे में निभाई जा रही है.मांडल में इस दिन (वैशाख नंदन) गधे की पूजा के लिए पूरा कुम्हार समाज इकट्ठा होता है. प्रताप नगर क्षेत्र में गधों को नहला धुलाकर सजाया जाता है, इन पर रंग-बिरंगे कलर लगाए जाते हैं, फिर इनको माला पहनाकर पहले चौक में लाया जाता है. वहां पंडित पूजा-अर्चना के बाद इनका मुंह मीठा कराते हैं, फिर उनके पैरों में पटाखे डालकर इनको भड़काया जाता है, फिर इनकी दौड़ कराई जाती है. गधों की पूजा के अनूठे आयोजन को देखने के लिए मंडल के आसपास के लोग आते हैं.  मांडल कस्बे के गोपाल कुम्हार कहते हैं कि बैसाख नंदन पर्व मांडल में लगभग 70 सालों से मनाते आ रहे हैं. 

हमारे पूर्वज पहले हर घर में गधे रखते थे, उससे हमारी रोजी रोटी चलती थी. अब जैसे-जैसे साधन बढ़ रहे हैं, इनकी संख्या कम होती जा रही है.  इनको हम भूले नहीं और हमारे पूर्वज दीपावली पर इनको पूजते थे, उसी परंपरा को निभाते हुए हम भी दीपावली के दूसरे दिन अनुकूट और गोवर्धन पूजा के दिन हम इनको पूजते हैं, जिस प्रकार किसान अपने बैलों की पूजा करते है. इस प्रकार हम कुम्हार समाज के लोग परंपरा को बनाए रखे हुए हैं.