राजस्थान उपचुनाव को लेकर इन 7 सीटों पर चल रहा हैं कड़ा मुकाबला, देखें ताजा जानकारी

Rajasthan News : भजनलाल सरकार के लिए यह लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। हालांकि, इस उपचुनाव में हार-जीत पर भजनलाल सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि सरकार के पार जरूरी बहुमत से ज्यादा विधायक है। लेकिन, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 7 में से 5 सीटों पर बीजेपी हार जाती है तो सीएम भजनलाल शर्मा का विरोधी खेमा सक्रिय हो जाएगा।
इसका असर मनोबल पर भी पड़ेगा। दौसा:7 विधानसभा सीटों पर सबसे महत्वपूर्ण सीट दौसा, देवली-उनियारा, खींवसर और चौरासी सीट पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इन सीटों पर विधायकों के सांसद बनने पर उपचुनाव हो रहे है। खास बात यह है कि इनमें से एक भी सीट बीजेपी के पास नहीं थी। इन उपचुनाव की सबसे हाॅट सीट दौसा मानी जा रही है। यहां से कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को बीजेपी उम्मीदवार बनाया है। माना जा रहा है कि किरोड़ी की नाराजगी दूर करने के लिए उम्मीदवार बनाया है।
यह सीट किरोड़ी लाल का गढ़ मानी जाती है। दूसरी तरफ दौसा सचिन पायलट की कर्मभूमि है । सचिन पायलट के पिता स्वर्गीय राजेश पायलट दौसा से पांच बार सांसद रहे है। ऐसे में चुनाव परिणाम से किरोड़ी लाल और सचिन पायलट का सियासी कद तय होगा। नागौर जिले की खींवसर विधानसभा उपचुनाव में आरएलपी प्रमुख सांसद हनुमान बेनीवाल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। बेनीवाल ने यहां से अपनी पत्नी को टिकट दिया है। यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई दे रहा है। इस बार कांग्रेस और आरएलपी के बीच गठबंधन नहीं है। इसलिए हनुमान बेनीवाल को जीतने के पूरा जोर लगाना पड़ रहा है।
बता दें लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच गठबंधन था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि खींवसर सीट से हनुमान बेनीवाल का सियासी कद तय होगा।वैसे इस सीट से दोनों ही प्रमुख पार्टियों से उम्मीदवार की लंबी लिस्ट रही है। लेकिन दोनों पार्टियों ने कोई जोखिम लेने की जगह पुरानी परंपरा को बरकरार रखा है। कांग्रेस ने यहां से केसी मीणा को टिकट दिया है। जबकि बीजेपी ने पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर पर भरोसा जताया है। विधायक हरीश चंद्र मीणा के सांसद बनने पर यहां उपचुनाव हो रहे है। यह सीट टोंक जिले में आती है।
ऐसे में सचिन पायलट का प्रभाव माना जाता है। इस बार कांग्रेस के बागी निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा ने मुश्किलें खड़ी कर दी है। नरेश मीणा कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे।विधायक राजकुमार रोत के सांसद बनने के बाद ये सीट खाली हुई है। भारत आदिवासी पार्टी ने सबसे पहले अनिल कटारा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। जबकि कांग्रेस ने महेश रोत को दिया है। 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने ताराचंद भगोरा को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वे हार गए थे।
इस बार भी भगोरा परिवार से भतीजा-बहु निमिषा भगोरा और रूपचंद भगोरा टिकट की मांग कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने भगोरा परिवार का टिकट काटकर युवा चेहरे पर भरोसा किया है। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है। बीएपी का कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं है। जबकि दोनों दलों के बीच लोकसभा चुनाव में गठबंधन था। ऐसे में मुकाबला रोचक होगा। इस सीट पर हार जीत सांसद राजकुमार रोत का सियासी कद तय करेगी। राजकुमार रोत लगातार दो बार यहां से विधायक रहे है।