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Rajsthan News: 13 साल की रेप पीड़िता 7 महीने की प्रेग्नेंट, राजस्थान हाईकोर्ट ने गर्भपात की दी अनुमति, जानें 

 
 
Rajsthan News:

Rajsthan News: राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ ने 13 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को सात माह की गर्भवती अवस्था में गर्भपात की अनुमति दे दी है। न्यायमूर्ति सुदेश बंसल की अदालत ने अपने आदेश में कहा, "यदि पीड़िता को प्रसव के लिए मजबूर किया गया तो उसे जीवन भर पीड़ा झेलनी पड़ेगी।" इसमें बच्चों के भरण-पोषण से लेकर अन्य मुद्दे शामिल हैं।

अदालत ने यह भी माना कि बच्चे को जन्म देने से पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचने की संभावना है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत ने महिला अस्पताल सांगानेर (जयपुर) की अधीक्षक को नाबालिग लड़की का गर्भपात कराने के लिए मेडिकल बोर्ड की व्यवस्था करने के निर्देश दिए।

अदालत ने कहा कि यदि भ्रूण जीवित पाया जाता है तो उसे जीवित रखने के लिए सभी प्रबंध किए जाएंगे। भविष्य में भ्रूण का पालन-पोषण राज्य सरकार के खर्च पर किया जाएगा। यदि भ्रूण मृत पाया जाता है, तो उसके ऊतकों को डीएनए रिपोर्ट के लिए संग्रहीत किया जाएगा।

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माता-पिता गर्भपात के लिए राजी हो गए। पीड़िता की वकील सोनिया शांडिल्य ने बताया: पीड़िता 27 सप्ताह और 6 दिन (7 महीने) की गर्भवती है। उसके माता-पिता भी गर्भपात कराना चाहते थे। हमने अदालत को बताया कि ऐसे कई मामले हैं जहां उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने 28 सप्ताह (7 महीने) की गर्भावस्था में भी गर्भपात की अनुमति दी है।

पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने तीन विशेषज्ञों के मेडिकल बोर्ड को पीड़िता की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। मेडिकल बोर्ड ने 8 मार्च को रिपोर्ट दी। इसमें कहा गया कि गर्भपात में जोखिम अधिक है, लेकिन इसे किया जा सकता है।

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हमने अदालत को बताया कि पीड़िता बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी। गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 के अनुसार, बलात्कार के कारण गर्भ ठहरना गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर माना जाएगा।

दिसंबर 2024 में एक अन्य मामले में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने बलात्कार पीड़ितों के मामले में दिशा-निर्देश जारी करने की मंशा जताई है। पीठ ने कहा था: गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि गर्भावस्था के 24 सप्ताह से पहले गर्भपात के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। गर्भावस्था के 24 सप्ताह के बाद न्यायालय की अनुमति आवश्यक है।

यह भी कहा गया कि बलात्कार पीड़ितों को उनके अधिकारों के बारे में नहीं बताया जाता। ऐसे मामलों में बड़ी संख्या में अदालत में याचिकाएं दायर की जाती हैं। चाहे वह वयस्क हो या नाबालिग। अधिकांश महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं।

विशेष रूप से, यौन उत्पीड़न के नाबालिग पीड़ितों को पुलिस और संबंधित एजेंसियों द्वारा उनके अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है। इस वजह से उन्हें न चाहते हुए भी बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। अदालत अब इस मामले में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करेगी। इस मामले में बलात्कार पीड़िता 31 सप्ताह की गर्भवती थी। अदालत ने गर्भपात की अनुमति नहीं दी थी।

गर्भसमापन का कानून क्या कहता है?

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत किसी भी विवाहित महिला, बलात्कार पीड़िता, विकलांग महिला और नाबालिग लड़की को 24 सप्ताह तक का गर्भ गिराने की अनुमति है। यदि गर्भ 24 सप्ताह से अधिक का हो तो मेडिकल बोर्ड की सलाह पर न्यायालय से गर्भपात की अनुमति लेनी होती है। एमटीपी अधिनियम में वर्ष 2014 में संशोधन किया गया। इससे पहले, 1971 का कानून लागू था।

दुष्कर्म पीड़ितों से जुड़ी ये स्टोरी भी पढ़ें.... दुष्कर्म पीड़ितों पर नए दिशा-निर्देश जारी करेगा हाईकोर्ट; कहा: अधिकार नहीं बताए जाते, बच्चे को जन्म देने पर मजबूर किया जाता है हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िताओं के मामले में कहा है कि उन्हें उनके अधिकारों के बारे में नहीं बताया जाता। इससे उन्हें बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। अदालत अब इस मामले में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करेगी।